यह जिन्दगी भी क्या जिन्दगी
इज्ज़त तो है पर पानी पानी है,
आज के खुले दोर मे
ये शर्म-हया कोरी बेमानी है।
आज ज़िंदा होकर भी मुर्दा हो ,
और कहते हो यह तो नादानी है?
तुम्हे अपनी सभ्येता से क्या लेना- देना
तू तो कल की जन्मी सभ्येता की दीवानी है
किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ यहाँ।
फिर चाहे वो कोई बारात हो या वारदात
यहाँ की हवाओं में भी दर्द और पीड़ा है,
लगता है की पराई धरती, अंजान देश?
एक खँडहर की भांति है मेरी संस्क्रती
अब आदमी जंगली और मेरा आंगन जंगल
3 comments:
मौजूदा हालात के मद्देनजर खूबसूरत रचना
वर्तमान हालात तो ऐसे ही नजर आ रहें है|
तुम्हे अपनी सभ्येता से क्या लेना- देना
तू तो कल की जन्मी सभ्येता की दीवानी है.
आय-हाय कितनी गहरी बात कह डाली आपने ...
यहाँ पर आपका इंतजार रहेगा शहरे-हवस
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