"थानेदार कवि"
आपके मन में विचार आया होगा की यह क्या शीर्षक है! पुलिस और कवि का कही मेल मिलाप नहीं है आज के जमाने के कवि सिर्फ कविता की ही रचना करके अपने और अपने परिवार का भरण पोषण नहीं कर पता है! वर्तमान के समय के कवि या तो अध्यापक होते है या फिर डॉक्टर अन्य कुछ नोकरी करते है पुलिस सेवा करने वाले व्यक्ति को कविता का वाचन करना अचरज की बात ही होगी!
आपके मन में विचार आया होगा की यह क्या शीर्षक है! पुलिस और कवि का कही मेल मिलाप नहीं है आज के जमाने के कवि सिर्फ कविता की ही रचना करके अपने और अपने परिवार का भरण पोषण नहीं कर पता है! वर्तमान के समय के कवि या तो अध्यापक होते है या फिर डॉक्टर अन्य कुछ नोकरी करते है पुलिस सेवा करने वाले व्यक्ति को कविता का वाचन करना अचरज की बात ही होगी!
क्यों की पुलिस का नाम आते ही जहन मे एक अलग सी छवि आ जाती है, कविता और काव्यो की जगह पर राइफल और बदमाशो के साथ दो दो हाथ करते है और वो २४ घंटे ही ड्यूटी पर रहते है इस लिए थोडा अलग सा लगता है! पर मे आज आपका जिस व्यक्तित्व से परिचय करवा रहा हु वो ड्यूटी के भी सक्त है और कविता मे तो वो निपुण है ही नागोर जिले की डीडवाना तहसील के छोटे से गावं रुंवा के रहने वाले महावीर सिंह "यायावर "
आज वो दोहरी भूमिका निभा रहे है प्रसासनिक सेवा के साथ साथ सामाजिक सेवा के लिए भी तत्पर रहते है, इनकी कविताओ मे वीर रस और समाज मे व्यापत बुराइयों, कुपर्था की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाली होती है!
यह कुछ कविताये है जो यायावर के कलम से निकली है
आज वो दोहरी भूमिका निभा रहे है प्रसासनिक सेवा के साथ साथ सामाजिक सेवा के लिए भी तत्पर रहते है, इनकी कविताओ मे वीर रस और समाज मे व्यापत बुराइयों, कुपर्था की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाली होती है!
यह कुछ कविताये है जो यायावर के कलम से निकली है
1) जिंदगी की दिशा
कई बार रास्ते तय करते है
तो कई बार दशा ?
यह सब निर्भर है आप पर,
कि आप रास्तो से तय होते हो या
परिस्थितियों से ?
मुट्ठी में रेत रोकने के लिए,
प्रयासरत हूँ मै तो,
एक अरसे से ?
लोग समझते है,
इसे मेरा पागलपन ?
पर मेरी तपस्या की
लगन.........?
निश्चित रूप से
मेरे लक्ष्य को ओर है.
लोग बस वहीँ तक अपने
पग चिन्ह बना पाएंगे ?
जहाँ तक शाम है,भोर है.
ये मै जनता हूँ भली भांति,
यह पगडण्डी
मुझे ले जाएगी वहां,
जहाँ क्षितिज का अंतिम छोर है ?
एक ही पल में
उसके अस्तित्व को नकारना ?
मेरे लिए तो संभव नहीं है.
जब तक की ढूंढ़ न लूँ
निर्णय कैसा ?
शीघ्रता किस बात की
आज नहीं तो कल,
इस जन्म में नहीं तो,
किसी और जन्म में ?
उस प्रकाश पुंज में
समाहित होगा
ये अन्धकार
और पूर्ण होगी
यायावर कि साधना.
2) आज शहर में निकला ढूंढ़ने,
कहीं तो मिले सावन के झूले ?
मेरा प्रयास व्यर्थ हुआ,
ना सावन के झूले,
ना गीतों की टेर,
और न रंग बिरंगे परिधानों में
अल्हड मस्ती का अनुभव.
धुप मिली धूआ मिला,
पर न मिली सावन की बुँदे.
फिर सोचा मन ने मन में ही,
ये लोग अलग है,
मेरे गाँव से,
ये क्या जाने भारत के रंग ?
भारत तो गाँवो रह कर,
पिछड़ गया इन पढ़े लिखो से.
ऊँचे ऊँचे पत्त्थर के घर,
काली सड़के उलझी उलझी,
आस पडोसी अनजाने से.
रिश्ते नाते सपनों जैसे,
टीवी पर त्यौहार मनाते
लोग यहाँ के बड़े निराले ?
समझ ना पाया रीति नीति,
मै गाँव का पिछडा दकियानुसी ?
वेलेंटाइन डे और हैप्पी क्रिशमिस
बाजारवाद की चका चौंध में,
राखी, तीज के अर्थ व्यर्थ है ?
आज शहर में निकला ढूंढ़ने...........यायावर.
![]() |
"यायावर" |
15 comments:
आपके इस अनुपम प्रेम व प्रोत्साहन का सदा ऋणी रहूँगा,
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (12-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
बहुत शानदार , में जैसे तैसे करके इनको ले ही आया ब्लॉग में। :)
Vikram
अभी इनके आईडी से हूँ इसलिए ऊपर कमेन्ट में इनका आईडी आया है
यायावर जी की दोनों की दोनों कवितायेँ बेहद लाजवाब लगी। उनकी रचनाओं को साँझा करने का बहुत बहुत आभार।
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ
des ki raajniti me ak neya mod aaya he dekete hi dekte des degmegaaya he duniya ko fdi ki raajniti me fesaaya he jera sa jor dikaker loksebha aur vidhan sebha me muda uthaya he fdi ke naam per logo ko fesaaya he des ki raajniti me ak neya mode aaya he soniya ne apna ger benaaya he to bsp aur semajwaadi parti ne cemisen khaya he des ki raaj nit me ak neya node aaya he bjp ne chunaaw ledene ka acha muda benaaya he des ki raajniti me ak neya modaayaa
me meri choti si kevita liki jiska naam he des ki raajniti ratore saab ke saat milker kuch aur kevita liker rog ki ak kevita like ka vaada kerta ho
praveen singh jodha (ransiser jodha )9783676745
अच्छे कवितायें....
गहन भाव समेटे हुए हैं...
अनु
ek nahi do... behatareen prastution ko padh accha laga
दोनों कवितायेँ अच्छी लगी यायावर जी से परिचय कराने का शुक्रिया
आस पडोसी अनजाने से.
रिश्ते नाते सपनों जैसे,
टीवी पर त्यौहार मनाते
लोग यहाँ के बड़े निराले ?
भाव और विचार सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त हुए हैं रचना में .
वाह ! शानदार कविताएँ !!
अभी जाते है यायावर जी के ब्लॉग पर!
विक्रम सा धन्यवाद यायावर जी को हिंदी ब्लॉग जगत में ठेलकर ब्लॉगजगत को बढ़ावा देने हेतु :)
भाई गजेंद्र सिंह जी
जय सिया राम!
वैसे तो पुलिस और कविता का मामला नहीं जमता. फिर भी हम पुलिसवाले इसे जमाने के लिए प्रयासरत हैं. महावीर जी को ब्लॉग जगत में प्रवेश करवाने के लिए ए.के. राजपूत जी को साधुवाद...
सुमित सिंह जी आपके लेखन से मेरे भ्रान्ति भी दूर हो गयी की पुलिस वाले कवि नहीं हो सकते है! आप के सभी लेख सराहनिए है
थानेदार कवी महावीर सा को बधाई
Post a Comment