कैसे दिखाऊ इस दर्द को, हर अंग जैसे चीख़ता है,
अब तो ज़िन्दगी का हर लम्हा लहूलुहान दीखता है,
ये कैसा देश है दरिंदो का यारो, यहाँ पर,
अस्मिता को रौंदने का हुनर क्यों सिखाया जाता है?
पत्थरों के शहर में पत्थर दिल के लोग बसते है यहाँ
फिर अस्मिता का खेल खेला इन पत्थरो ने मेरे साथ ,
फिर मेरी ज़िन्दगी आतताइयों की भेंट चढ़ी
मेरे दर्द की चीख़ सुन ये दिशाएं तक मौन,
मानव है जो मौनवर्त और मानवता है अचेत,
ढेर होते दिखे सपने दहशत भरी आंखो को
कराह भी अब मजबूर हुई दर्द मे छिपने को
चुन चुन कर मसला गया अस्मत की पंखुड़ियों को
आत्मा तक छिल गई तरस न आया दरिंदों को
महफूज कहाँ हर माँ ने समेटा आँचल में बेटी को
हेवानियत फेली दिखती चहु और केसे बचाऊँ उसको
अभी सनसनी कल सुनी हुई बीती बात होगी परसो
जख्म गहरे तन पर मगर मन पर निशान उम्र भर को
By:- Alpana Singh
3 comments:
बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना . आज के सच को उकेरती लाजवाब अभिवयक्ति
बहुत मार्मिक आज इस समाज से इस देश से अपने अस्तित्व से भी विशवास उठ चुका है हर माँ के दिल में गहरा जख्म हो गया है क्या है उपचार मिलकर सोचना है ,---बहुत अच्छा लिखा शुभ कामनाएं http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/
मार्मिक अभिव्यक्ति
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