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Sunday, 15 December 2013

कोम की चेतावनी

तुम बेशक हो सरताज तो हम यहाँ बुनियाद हैं,
हमसे ही है यह सरताज जो सदियों से आबाद है। 

रोटियों का दर्द लेकर जी रही है यह क़ौम,
कब तलक करते रहेगे, व्यर्थ की फ़रियाद ?

और कितना इस क़दर भरते रहोगे ज़ेब को,
तुम्हारा कुछ हो न हो पर कोम तो बर्बाद हो रही।

तुमने चाहा हम गुलाम बन गये अपनी कोम के लिए
और नारे हम लगाते रहे आज़ाद है हम।


किश्तों की ज़िंदगी सा घटता कोम का जीवन 
कल की बात छोडो तुम,  ज़ख्मी है हम आज

पर अब सर उठाने लग गई हैं मशालें हर तरफ,
अब न सम्हले तो यहाँ सबकी होगी मुर्दाबाद ।



"गजेन्द्र सिंह रायधना"