Monday, 17 December 2012

आम आदमी का दर्द

                                                       
                                                          आम आदमी का दर्द



     तुझसे हमको क्या  मिला है ,
     जिसका हमें गिला शिकवा है ।

      बात तो  सिर्फ एक रोटी की थी,
हम ने कब चाहा की मीठे पकवान हो।


क्यों टूटे सपनो को सवारने की सज़ा देते हो,
रोशनी में भी अंधेरों के दीपक जला लेते हो,



वोट देकर क़र्ज़ दिया था,अपने को गिरवी रख कर
अब तुम चूका रहे हो हमें महगाई की क़िश्तें देकर।




वक़्त को भी अपना कहु गर ,
इसने मे भी कोई ज़ख्म सिला है तेरा।



अपने सपनों में ही शायद खुश हू ,
तेरे हकीकत के काटो वाले फूलो से।










2 comments:

Anonymous said...

क्यों टूटे सपनो को सवारने की सज़ा देते हो,
रोशनी में भी अंधेरों के दीपक जला लेते हो,
वाह शानदार !

Gyan Darpan said...

शानदार रचना

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