आम आदमी का दर्द
तुझसे हमको क्या मिला है ,
जिसका हमें गिला शिकवा है ।
बात तो सिर्फ एक रोटी की थी,
हम ने कब चाहा की मीठे पकवान हो।
क्यों टूटे सपनो को सवारने की सज़ा देते हो,
रोशनी में भी अंधेरों के दीपक जला लेते हो,
वोट देकर क़र्ज़ दिया था,अपने को गिरवी रख कर
अब तुम चूका रहे हो हमें महगाई की क़िश्तें देकर।
वक़्त को भी अपना कहु गर ,
इसने मे भी कोई ज़ख्म सिला है तेरा।
2 comments:
क्यों टूटे सपनो को सवारने की सज़ा देते हो,
रोशनी में भी अंधेरों के दीपक जला लेते हो,
वाह शानदार !
शानदार रचना
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