-:सर्द का सितम:-
अब सर्द होने लगा है मौसम का रुख़
कोहरा फिर से घना होने लगा है यहाँ
धुंध की दीवार के पीछे धूप की चाहत है!
निगोड़ी ठण्ड की कैसी-कैसी है परियोजनाए
स्नेह के दिन हुए फिर शीत के हवाले,
चारो तरफ सर्द हवाओं की बस्तियां बसी है।
ज़िस्म छलनी है तेरे शीत अह्साहस से
कौनसी ज़िद है कि ये सांस अभी तक ज़िन्दा है,
है चारो तरफ साज़िशें मुझे मिटने की
क्यों मेरी ज़िन्दगी से इतनी रंज़िशें है?
तेरी सर्द हवाए मुझे एक सन्देश दे जाती है
की ज़िन्दगी में यहाँ दर्द और यातनाएं भी हैं!
1 comments:
कुछ ठण्ड सी महसूस होने लगी :)
बहुत अच्छी रचना
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