Sunday 15 December 2013

कोम की चेतावनी

तुम बेशक हो सरताज तो हम यहाँ बुनियाद हैं,
हमसे ही है यह सरताज जो सदियों से आबाद है। 

रोटियों का दर्द लेकर जी रही है यह क़ौम,
कब तलक करते रहेगे, व्यर्थ की फ़रियाद ?

और कितना इस क़दर भरते रहोगे ज़ेब को,
तुम्हारा कुछ हो न हो पर कोम तो बर्बाद हो रही।

तुमने चाहा हम गुलाम बन गये अपनी कोम के लिए
और नारे हम लगाते रहे आज़ाद है हम।


किश्तों की ज़िंदगी सा घटता कोम का जीवन 
कल की बात छोडो तुम,  ज़ख्मी है हम आज

पर अब सर उठाने लग गई हैं मशालें हर तरफ,
अब न सम्हले तो यहाँ सबकी होगी मुर्दाबाद ।



"गजेन्द्र सिंह रायधना" 


Thursday 20 June 2013

राजस्थान री रीत

बता राजस्थान  "बाँ " थारी रीत कठै।                                              
सीस कटियोड़ा धड़ लड़ रहया एडा पूत कठै। 
गाया खातर गाँव गाँव मे बलिदानी जुंझार कठै।                           
फेरा सू अधबीच मे उठतों "बो" पाबू राठोर कठै ।   
कठै है अब "बा" भामाशाह साहूकार री रीत। 








                                                              सुख दुख मे सब साग रेवता बा मिनखा री प्रीत कठै।  
                                                              मोठ बाजरा रो रोट ओर फोफलिया रो सांग कठै।  
                                                              मारवाड़ सू मेवाड़ तक गुजता "बी" मीरा रा गीत कठै।   
                                                              बता राजस्थान  "बाँ " थारी रीत कठै।
                                                               





गोगा- रामदेव तेजा जेड़ा कलजुग रा पीर कठै।                    
भोम-धरा पर आंच आवता मर मिटनै री रीत कठै।
दुर्गा- पन्ना जेड़ी स्वामिभक्ति री रीत कठै।






                                                          बता राणी पद्मणी जेड़ी प्रीत कठै।
                                                          कठै है बो "प्रथ्वी" गोरी ने हरबा वालो ।
                                                          पतिया साग सुरग मे जावण री रीत कठै।
                                                          बता "बाँ "मूमल महेन्द्रा  ओर ढोला- मारू री प्रीत कठै।
                                                          बता राजस्थान "बाँ " थारी रीत कठै।   
                                                        



   

Sunday 9 June 2013

शादी

घर में शादी का कार्ड देखते ही मन में एक अलग सा ही उत्साह बन जाता है पड़ोस मे  सिंह साब के छोटे लड़के की शादी है, आज कल एक चलन ही हो गया है सभी को कार्ड देने का। कार्ड देखकर हमें अपनी शादी के दिन याद आ गए। फिर हमने अपनी भावनाओ को रोका और कार्ड को पढने लग गये,चाहे वर और वधु खुबसुरत हो ना हो कार्ड सुन्दर सा छपवाया जाता है, उसमे भी  किसी पहुचे  हुए आदमी या फिर किसी नेताजी  को मुख्य  अथिति के रूप मे बड़े बड़े शब्दों मे लिखा रहता है, हमने श्रीमती से पूछा किसकी  शादी का कार्ड है तो वो जुंझलाकर बोली की आप अनपढ़  तो हो नहीं जो कार्ड नहीं पढ़ सकते हो, अगले दिन ही श्रीमती जी सुबह सुबह ही सज धज के तेयार हो गये शादी मे जाने के लिए हमने कहा की शादी सायं की आप के पेरों मे तो अभी ही घूघरू लग गये है।

हम लोग सही समय पर शादी मे पहुच गये । दूल्हा सध-धज कर तैयार था इतने मे किसी ने कहा की छोटे वाले जीजाजी नाराज़ होकर बैठ गये है उनको रेल्वे स्टेशन पर लेने के लिए कोई आया नहीं था इसके लिए वो कोपभवन मे चले गये। घर के सभी लोग उन्हे मनाने मे लग गये बड़ी जतन के बाद वो राजी हुए  फिर बारात का प्रस्थान हुआ दूल्हे के आगे सभी नाचते हुए चल रहे जिसको नाच नहीं आता वो भी हाथ पेर मारते रहते है जो शराब के नशे मे है उनका तो कहना ही क्या उनका एक पैर पाकिस्तान जा रहा है तो दूसरा श्रीलका जा रहा है आज कल के युवा बिना शराब के तो शादी मे आते ही नहीं है। खेर कोई बात नहीं आज कल शराब तो एक फेशन सा ही बन गया है दूल्हे के पास मे खड़े दूल्हे के जीजा इस इंतजार मे है की कोई इनको भी नाचने के लिए बोले वो भी अपना हुनर दिखाए।












नाचते नाचते हम लोग समाहारों स्थल पर पहुचे ओर पहुचते ही सभी लोग खाने पर टूट पड़े क्या बच्चे ओर क्या बड़े जैसे खाना खत्म होने वाला हो एक आंटी जी ने प्लेट को इतना भर लिया जैसे दूसरे बार लेना मना हो। इसका  कारण यह भी है की खाने की स्टोंल पर लंबी लंबी कतार लगी रहती है इसके लिए एक बार मे ही सब ले कर काम तमाम कर दिया जाता है। चाट पकोड़ी के स्टॉल पर तो सिर्फ बच्चो का ही कब्जा  रहता है। हमे भी विचार किया की अब खाना खा ली लिया जाए बरातियों को तो अच्छा खाना मिल जाए ओर क्या चाहिए मे खाना खा रहा था इतने मे शोर सुनाई दिया मेने देखा की सिंह साब लड़की के पिता जी से ज़ोर से  चिल्ला कर बात कर रहे थे की आपने मारुति देने की बात की थी वो कहा पर है एक लाख नगद देने की बात थी उसने भी कम है मेरा बेटा प्राइवेट कंपनी मे बाबू है ओर पूरे 40 हजार महिना पगार लेता है इतने मे दूल्हे के फूफा जी बीच मे आ गये ओर उन्होने बात को संभाला ओर उनको शांत किया। पर सिंह साब कहने लगे की अपने ही समाज के राम सिंह के लड़के के शादी मे कितना धन आया था लड़का छोटी मोटी नोकरी करता है मेरी तो नाक ही कट जाएगी मेरे सारे अरमानो पर पानी फेर दिया है। इतने मे लड़की के बाप ने बोला की मेरी एक एफ़ डी पूरी होने वाली है तब आपको मे दे दुगा अभी आप शांत रहो ओर भी लोगो ने सिंह साब को समझाया की लड़की घर खराने की है ओर पढ़ी लिखी है। सिंह साब ने अपने अरमानो को दबाते हुए जुंझला कर  चले गये। मे भी खाना खा कर अपने घर की तरफ यह सोचते सोचते चला गया की सिंह साब के भी एक लड़की है जो अभी कुँवारी है

" गजेंद्र सिंह रायधना" 



Wednesday 5 June 2013

गाँव का जीवन

देख मेरे गाँव ओर तेरे शहर मे फर्क कितना है
मेरे गाँव का निर्माण भगवान ने किया है,
ओर मानव ने शहर का............

 हा तेरे शहर मे बटन दबाते ही बिजली ओर,
 नल घुमाते ही पानी आ जाता है
 पर मेरे गाँव मे यह सब थोड़ा कठिन है पर जीवन सरल है

 मेरे गाँव का जीवन आत्म संतुस्टी का जीवन है
 ओर तेरे शहर का जीवन इंद्रिये भोग का जीवन है

 मेरा गाँव एक पूरा परिवार की तरह रहता है
 ओर तेरा शहर "मे" से शुरू होता है ओर "मेरा" पर खत्म हो जाता है

मेरे गाँव का तो सिद्धान्त यह है की सब मिल बाटकर रहे
पर तेरे शहर का सिद्धान्त तो दूसरों को गिरा कर आगे बढ़ने का है

मेरे गाँव मे तो सम्मान की संस्कृति फलती फूलती है
ओर तेरे शरह मे तो गर्व ओर घमड की  संस्कृति फलती फूलती है

मेरे गाँव मे कोयल की आवाज़ गूँजती है ओर मोर नाचते है
ओर तुम शहर वाले इन्ही को टेलीविज़न पर देख कर ख़ुश होते हो



यह छोटी सी कोशिश की है गाँव ओर शहर के जीवन के बीच के अन्तर को बताने की कोशीश की है 

Tuesday 14 May 2013

फेसबुक संसार



दुनिया मे जब से फेसबुक ने जन्म लिया है जब से ही  उसने अपना एक अलग समाज का निर्माण कर लिया है इस समाज मे छोटे बड़े अमीर गरीब हर धर्म के लोगो को बराबर का स्थान मिला हुआ है ओर इस संसार मे रहने वाले फेसबुकिया कई प्रकार के होते है जेसे की पिछड़े हुए फेसबुकिये यह यह कभी-कबार भूले भटके आ जाते है जो अपनी उपस्थ्ति दर्ज कवाकर फिर 15-20 दिनो के लिए अंतर्ध्यान हो जाते है इन से बढकर सामान्य जाति के फेसबुकिए होते है जो इस संसार मे रुक रुक कर पाकिस्तानी सेना की तरह घुसपेठ करते रहते है।
 कभी हेलो हाय करते रहते है कुछ कोमेंट और लायक करके वापस अपने बंकर मे छिप जाते है,और एक होते है उच्च कोटि के फेस्बुकीय जिनके कारण यह संसार बिना रुके चलता रहता है यह है जो इस संसार को चमका रहे है,क्यों की इनका उठाना बेठना रोना धोना खाना पिना सब इस संसार मे ही होता है इनको फेसबुक के अलावा कोई और बुक अछी नहीं लगती है अगर कोई और बुक पढ़ते तो आज कोई अच्छी सरकारी नोकरी मे होते, चलो कोई बात नहीं, यह इतने कट्टर फेस्बुकिया किसी के मरने की खबर को भी लायक करते है।

 इस संसार मे भांति भांति के लोग रहते है उसी प्रकार फेसबुक रूपी संसार मे भी रहते है, अगर महिलाये तो कोई बात लिख दे तो लायक और कोमेंट की बरसात हो जाती है, पर लाइक करने वालों को पता नहीं की यह नारी नहीं नर है बस लायक करते रहते है।

 इस जगत की तरह फेसबुक जगत मे भी नकली और ठग लोग भरे पड़े है क्या नेता और अभिनेता सब इस समाज मे अपना एक रुतबा बना रखा है नेताजी को लिखना पढना नहीं आता हो पर फेसबुक पर तो खता होना ही चाहिय चाहे उसे उनका P.A ही चलाये।   
असली फेसबुक की पूजा किसी योगी के तप से भी कठीन होता है। अगर कोई स्टेट्स पर कोई भी लायक और कमेन्ट नहीं आता है,  तो दोस्तों को फोन किया जाता है अगर फिर भी कुछ नहीं होता तो लंच क्या और डिनर क्या सब उनके लिए हराम हो जाते है। अगर एक दो कंमेंट आ जाते है तो उनका फेसबुक संसार मे होना सफल हो जाता है फिर दुसरो के स्टेट्स भी लायक करना पड़ता है इस संसार की तरह फेसबुक संसार मे भी लेने के देने है। इतने मे ही हरी बती भी टीम टीम करने लगी तो उसको भी जवाब देना पड़ता है। 

इश्वर के बनाये संसार और आदमी के बनाये फेसबुक संसार मे बहुत समानता है कुछ लोग ऐसे होते है जो दुसरो पर निर्भर रहते है पता नहीं कहा कहा से गजले गीत स्टेट्स और पता नहीं क्या क्या चुरा कर ले आते जिसे हम वास्तविक संसार मे चोर कहते है पर फेसबुक संसार मे क्या कहते है, इन लोगो की संख्या इस संसार मे भी बढती जा रही है तो फेसबुक संसार पीछे क्यों रहे।  

अब तो फेसबुक मे खाता नहीं हो तो उसको गाव का जाहिल और गवार समझा जाता है, बेंक मे खाता हो न हो फेसबुक मे होना जरूरी हो गया है। अगर किसी का खाता नहीं हो और उसे कोई पाच आदमियों के बीच मे पूछ लिया जाये की आपका फेसबुक मे खाता है की नहीं अगर उसका जवाब ना हो तो उसको ओछी नजरों से देखा जाता है ओर वो आदमी शर्मिदगी महसूस करता है,मेरा तो है आपका है या नहीं ? इस संसार की तरह फेसबुक संसार भी अनंत है ओर धीरे धीरे अपनी सीमाओ को बढ़ा रहा है। बाकी का वार्तान्त अगले भाग मे 

' जय हो फेसबुक संसार की'

Sunday 5 May 2013

लाड़नू का इतिहास

 लाड़नू  का इतिहास 

महाभारत काल मे इस प्रदेश का नाम गन्धव वन था 
कालांतर मे यह प्रदेश क्रष्ण के समकालीन शिशुपाल वशीय परंपरा के ही पँवार डहलिया राजपूतो के हाथ मे था ! डहलिया चंदेल थे इस कारण इस स्थान को बूढ़ी चँदेरी नाम से जाना जाता था ! इसी के संदभ मे विक्रम की ग्यारहवी शदी मे रचित डिंगल भाषा के प्रथ्वीराज रासो के उल्लेख मे ही शिशुपाल वशीय शासित नगरी चँदेरी जो वर्तमान मे  लाड़नू नगर के नाम से जाना जाता है!






लाड़नू  किले का नामकरण :- 

चँदेरी किला मोहिल मनसूख़ की पहरेदारी मे था यह किला मिट्टी का बना हुआ था इस कारण इसे धूल का किला भी कहते थे ! मोहिल राणा इसे पक्का बनाने की सोच रहे थे ! पर यह किला बनने का नाम ही नहीं ले रहा था ! उसको दिन मे जितना बनाते वो रात को गिर जाता था  ओर यह सिलसिला तीन पीढ़ी तक चलता रहा  पर यह किला अधूरा का अधूरा ही रहा !

कुवर विक्रम सिंह का विवाह छापर हुआ ! उस समय राजपूतो मे एक रिवाज था की जवाई ससुराल मे पहली रात सोकर उठता है तो श्सुर से कुछ माग रखता है ओर वो माग पूरी नहीं होती है तब तक जवाई महलो से नीचे नहीं उतरता था ! पर विक्रम सिंह ने अपनी रानी से कहा की मेरे पास सब कुछ है मे तेरे पिता जी से क्यो मागु 
पर पत्नी के हठ के आगे किसकी चलती है जो विक्रम सिंह जी की चलती तब विक्रम सिंह जी बोले की तू ही बताओ की मे क्या मागु तब उसकी पत्नी बोली की आपका किला पूरा नहीं हो रहा इतने मे विक्रम सिंह बीच मे बोल जाते है की इसका उपाय भी तो नहीं है ?
रानी बीच मे ही बोल पड़ी - यदी आप अपना किला पूरा करना चाहते हो तो इस पंडित जी को माग लेना जिंहोने कल अपना विवहा करवाया था वे सिद्ध पुरुष है ! प्रात काल ससुर ने माग- देही का आग्रह किया ! विक्रम सिंह जी बोले की ईश्वर की अनुकंपा से सब कुछ है ! बस आप तो अपना आशीवाद ही दे दीजिये!
ससुर जी हठ करने लगे की आपको कुछ तो मागना ही होगा अंत मे विक्रम सिंह ने कहा की आपकी इतनी ही इच्छा है तो कल चवरी मे विवाह करवाने वाले  पंडित जी को हमे दे दीजिए !
मांग बड़ी कठिन थी पर उसको पूरा तो करना ही था पर  पंडित जी कोई चीज तो थी नहीं उन्होने माना कर दिया  अंत मे  पंडित जी को मनाया गया तो वो मान गए पर उन्होने एक शर्त रखी की मेरे साथ माताजी ओर भेरुजी भी जाएगे ! यह भी शर्त पूरी की गई  पंडित के साथ माता जी ओर भैरुजी को भी लाड़नू लाया गया 
ओर अगले दिन किले मे माता जी ओर भेरु जी की स्थापना की गई ओर पंडितजी ने अनुष्ठान किया ओर कुछ ही दिनो मे किला बनकर तैयार हो गया था फिर इस किले का नागल पंडित जी ने करवाया था जिस कारण इस किले का नाम उनके नाम पर ही रख दिया गया था !

पंडित जी पारीख जाति के थे पंडित जी तीन भाई थे लाड़ोजी , हेमाजी ओर पावोजी इन तीनों के नाम पर अलग अलग जगह का नाम पड़ा लाड़ो के नाम पर  लाड़नू  हेमजी के नाम पर हेमा बावड़ी ओर पावो जी के नाम पर पावोलाव तालाब बनाया गया ! जिस स्थान पर लाड़ोजी रहते थे आज भी उनके वंशज रहते है जिसे परीखों के बास के नाम से जानते है 



Sunday 28 April 2013

मोत


यह रुलाई नहीं तो फिर क्या है !
यह जुदाई नहीं तो फिर क्या है,

हाँ वो मुलाक़ात तो सफाई से करते है,
गर यह सफाई नहीं तो फिर क्या है,

दिलरुबा की तो सिर्फ दिलरुबाई है,
गर दिलरुबाई नहीं तो फिर क्या है,

शिकवा होता है सिर्फ दोस्ती मे,    
यह दोस्ती नहीं तो फिर क्या है,

रब ही जाने इन हसीनाओ का गुरूर,
यह खुदाई नहीं तो फिर क्या है,

गर मोत आई तो टल नहीं सकती है,
ओर आई नहीं तो कोई मार नहीं सकता ! 

Thursday 7 March 2013

सोशल इंजीनियरिंग


यह सब वोट बैंक  के चक्कर मे ऐसे फेसले लिए जा रहे है जिससे  भारतीय संस्क्रती अपने अस्तित्व की लड़ाई अपनों से ही लड़ रही, किताबो में पढ़ा है की कई देशो की संस्क्रती विलुप्त होने का कारण बाहरी देशो का आक्रमण या फिर और बाहरी कारण था, पर भारत देश तो अपने देश के कर्णधारो के बचकाने फेसले और नीतियों के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है चुनावी साल में आखिरी बजट पेश करते हुए गहलोत साहब ने सोशल इंजीनियरिंग के अपने नायाब फॉर्मूले का सहारा लिया है।

मेरा मानना है की  विवाह केवल मात्र एक भोग का नाम नहीं है, इससे पति पत्नी के . Genetic एवं वंश-परम्परा के गुणों का मिलान नहीं होता ! समान गोत्र में या बिना सोचे समझे किसी भी जाति में विवाह हो रहे हैं! कृषि जगत में नस्ल देखी जाति है. तो फिर हम तो इन्सान है किसी भी जाति से केसे शादी कर सकते है अगर करते है तो फिर संतान विकर्त होती है इतिहास मे एसे बहुत से उधारण है :-
 
विश्रवा की आसुरिक स्वभाव वाली पत्नी ने गलत काल में, मात्र कामवश ( न कि ऊर्ध्व चिंतन में निमग्न होकर) विश्रवा से मिलन किया. इसी कारण एक आसुरिक प्रवृत्ति से संपन्न आत्मा ने वहाँ शरीर ग्रहण किया. वह रावण था.ऐसे विवाह से उत्पन्न संतान जन्मजात रूप से सत्-विरोधी होती है, भले ही वह कितनी भी बुद्धिमान अथवा शक्तिशाली क्यों न हो. किसी समाज में यदि एक-दो विवाह भी ऐसा हो जाता है तो वह समाज नष्ट होता ही होता है. इस संतान का सुधार असंभव होता है ! वंशानुगत गुण एक सच्चाई है जिसे नकारा नहीं जा सकता। रक्त की शुद्धता व DNA के रूप में अब वंशानुगत लक्षणो को अब विज्ञानं भी मानता है। पर यह नेताजी कब मानेगे इस सचाई को ?




Sunday 3 March 2013

जिन्दगी

बादल की खिड़की से सूरज ने आँखें खोलीं,
 
सिरहाने चढ़ एक चुलबुली 
 
कोयल बोली ...
 
छोड़ दो नींद की अंगड़ाइयाँ,
 
चलो,अब उठो, करनी है आज एक और 
 
जीवन की यात्रा।

रोज़ की तरह  थके पांव,
 
दोड़ती जिन्दगी पार करनी है 

यह सूरज भी मुझे अकेला छोड़कर 
 
हर रोज ही,चुपके-चुपके भाग जाता है?

आजका दिन दौड़ती हुई एक सड़क
 
जो लोटकर कभी  नहीं आएगा,

Friday 8 February 2013

बहुत देर आये दुरुस्त आए

आखिर आज लटका एक सरकारी अथिति
१२ साल से तो  कानून ही लटका हुआ था!

कानून की देवी का निर्णय देश हित में था 
फिर इसको किसलिए लेट लटकाया गया?
 

देश के नेता जी क्यों हमदर्दी दिखाकर
अब तलक उसको जीवन दान देते रहे ?


एक-दो को फांसी से यह नासमझी जनता 
उसको झुनझुना दे कर बहलाया गया है!

कौन समझाएगा राजनीती को यहाँ
की फिर चुनावी मुद्दा भुनाया गया है! 





Thursday 7 February 2013

बलिदानी कोंम

सिर कटियोड़ा घणा लड्या
      पण बिना पंगा घमसान मच्या!

             कल्लू कांधे बेठ्या जयमल 
गजब अजूबो समर रच्यो !

        कलम चलाणों जे नहीं सिख्यो 
                 पण सेंला सूं लिखी कहाणी है 

भाटे- भाटे चितोड दुर्ग के 
         हेटे दबी जवानी है !

            जोहर शाका रचा रचा कर 
करी घणी नादानी है !
      आ कोम घणी बलिदानी है !!

          हल्दी घाटी की माटी भी 
                 चन्दन बरनी दीख रही !

ई माटी ने शीश चढाओ
    अण बोली आ सीख सही !

             धर्म कारणे ई माटी में 
लोही की भी नदी बही !

       पुरखा की रीत निभावण  नै 
                  मकवाणों मरतो डरयो नहीं 

छत्र चंवर छहगीर लियां
       यमराज करी अगवाणी है !

           आ कोम घणी बलिदानी है !!

समसाणा की आग समेटी 
            भाला सूं बाटी सेकी है !

                मरूधर धर ने मुक्त कराई
स्वामी भक्ति विशेषी ही !


         दुरगो बाबो घुड़ले सोयो 
                  पीठ ढोलणी राखी नहीं 

डगराँ मगरा भटक सदा ही 
        हिवडे री पीड़ा कण न कही!

                स्याम धर्म ने साध दुरगजी 
राखी पुरखा की सेनाणी है!
         आ कोम घणी बलिदानी है !!

                   लूआं सू तपती ई माटी का 
कण कण में बलिदान भरयो!

         शीश हथेली मेल शूरमा 
                  रण मे ऊँचो नांव  करयो!

सिवां पर डटीया बीरा कै 
          नेड़ो आतो काल डरयो!


          धर्म धरती नै राख़ण सारु 
वीरां नै मिली जवानी है!

        बच्चा बच्चा देश रुखाला
                कीनी घणी कुर्बानी है!
आ कोम घणी बलिदानी है !!

लेखक-: "भंवरसिंह बेन्याकाबास"





















Sunday 3 February 2013

अपने देश मे बेगाने


लो अपने ही शहर मे बिकने लगा इन्सान,   
जेसे की धुप बिना दिखने लगीं परछाईयाँ। 

मानवता के गहन रेशे जेसे जी रहे हैं बंदिशों में,  
भ्रस्ट्राचार के साम्राज्य में सत्ये है अब गर्दिशों में।

फिर से अराजकता की धुंध और महगाई के तीर-भाले,
देखो नेताजी फिर खाने लगे है रिश्वत के गहरे निवाले।

अब तो कतरा कतरा रिसने लगीं है रुसवाइयाँ यहाँ,
चलो अब तो ख़ारिज करो इन देश के बिचोलियों को।

इन अंधेरी बस्तियों को जगमगाने के लिए,
चलो कुछ और जलाये अपनी मशालों को।

गर बदलनी है यह बदरंग सी सूरत इस जन्हा की, 
तो ज़रा नफ़रत से नवाजो इन सियासी नेताओ को।

अक्सर तेरी चीख़ें यहाँ बहुत ख़ामोश सी रहती हैं,
वो वक्त आ गया तेरी चीखों को खुलकर चीख़ना होगा।





"गजेन्द्र सिंह रायधना"