सिरहाने चढ़ एक चुलबुली
कोयल बोली ...
छोड़ दो नींद की अंगड़ाइयाँ,
चलो,अब उठो, करनी है आज एक और
जीवन की यात्रा।
रोज़ की तरह थके पांव,
दोड़ती जिन्दगी पार करनी है
यह सूरज भी मुझे अकेला छोड़कर
हर रोज ही,चुपके-चुपके भाग जाता है?
आजका दिन दौड़ती हुई एक सड़क
जो लोटकर कभी नहीं आएगा,
1 comments:
यही जिन्दगी है...
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