Wednesday 5 June 2013

गाँव का जीवन

देख मेरे गाँव ओर तेरे शहर मे फर्क कितना है
मेरे गाँव का निर्माण भगवान ने किया है,
ओर मानव ने शहर का............

 हा तेरे शहर मे बटन दबाते ही बिजली ओर,
 नल घुमाते ही पानी आ जाता है
 पर मेरे गाँव मे यह सब थोड़ा कठिन है पर जीवन सरल है

 मेरे गाँव का जीवन आत्म संतुस्टी का जीवन है
 ओर तेरे शहर का जीवन इंद्रिये भोग का जीवन है

 मेरा गाँव एक पूरा परिवार की तरह रहता है
 ओर तेरा शहर "मे" से शुरू होता है ओर "मेरा" पर खत्म हो जाता है

मेरे गाँव का तो सिद्धान्त यह है की सब मिल बाटकर रहे
पर तेरे शहर का सिद्धान्त तो दूसरों को गिरा कर आगे बढ़ने का है

मेरे गाँव मे तो सम्मान की संस्कृति फलती फूलती है
ओर तेरे शरह मे तो गर्व ओर घमड की  संस्कृति फलती फूलती है

मेरे गाँव मे कोयल की आवाज़ गूँजती है ओर मोर नाचते है
ओर तुम शहर वाले इन्ही को टेलीविज़न पर देख कर ख़ुश होते हो



यह छोटी सी कोशिश की है गाँव ओर शहर के जीवन के बीच के अन्तर को बताने की कोशीश की है 

2 comments:

Unknown said...

मेरे गाँव का निर्माण भगवान ने किया है,
ओर मानव ने शहर का............गाँव -गाँव ही बने रहे इशी में मानवता की भलाई है ।

Unknown said...

sahi hai gaju banna

Post a Comment