सिर कटियोड़ा घणा लड्या
पण बिना पंगा घमसान मच्या!
कल्लू कांधे बेठ्या जयमल
गजब अजूबो समर रच्यो !
कलम चलाणों जे नहीं सिख्यो
पण सेंला सूं लिखी कहाणी है
भाटे- भाटे चितोड दुर्ग के
हेटे दबी जवानी है !
जोहर शाका रचा रचा कर
करी घणी नादानी है !
आ कोम घणी बलिदानी है !!
हल्दी घाटी की माटी भी
चन्दन बरनी दीख रही !
ई माटी ने शीश चढाओ
अण बोली आ सीख सही !
धर्म कारणे ई माटी में
लोही की भी नदी बही !
पुरखा की रीत निभावण नै
मकवाणों मरतो डरयो नहीं
छत्र चंवर छहगीर लियां
यमराज करी अगवाणी है !
आ कोम घणी बलिदानी है !!
समसाणा की आग समेटी
भाला सूं बाटी सेकी है !
मरूधर धर ने मुक्त कराई
स्वामी भक्ति विशेषी ही !
दुरगो बाबो घुड़ले सोयो
पीठ ढोलणी राखी नहीं
डगराँ मगरा भटक सदा ही
हिवडे री पीड़ा कण न कही!
स्याम धर्म ने साध दुरगजी
राखी पुरखा की सेनाणी है!
आ कोम घणी बलिदानी है !!
लूआं सू तपती ई माटी का
कण कण में बलिदान भरयो!
शीश हथेली मेल शूरमा
रण मे ऊँचो नांव करयो!
सिवां पर डटीया बीरा कै
नेड़ो आतो काल डरयो!
धर्म धरती नै राख़ण सारु
वीरां नै मिली जवानी है!
बच्चा बच्चा देश रुखाला
कीनी घणी कुर्बानी है!
आ कोम घणी बलिदानी है !!
लेखक-: "भंवरसिंह बेन्याकाबास"
2 comments:
बहुत ओजस्वी बढ़िया रचना |
अब शीश कटाने की जगह शीश गिनवाने सीखना है इस कौम को !!
लूआं सू तपती ई माटी का
कण कण में बलिदान भरयो!
बहुत व्यवस्थित सार ...
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