Wednesday 4 July 2012

मेरा गाँव

यह शहर तो मुझे खत्म ही कर ही देते, पर मे ज़िन्दा हु आज भी,
यहाँ की कड़ी धूप में वो बरगद की छाँव मुझमे ज़िन्दा है,
यहाँ के भीड़ भाडा मे तालाब की पाल की वो शांति आज भी जिन्दा है ,
यहाँ की वस्त जिन्दगी मे गावं की सुबह आज भी जिन्दा है,
यहाँ की दिन भर की थकान मे माँ का प्यार आज भी जिन्दा है,
यहाँ के गंदे नालो मे गावं की नदी का पानी  आज भी जिन्दा है,
यहाँ के बगीचों में गावं के खेतो की  महक आज भी जिन्दा है,
यहाँ के खाने मे माँ की हाथ की रोटी की महक आज भी जिन्दा है,
यहाँ  ज़िन्दा हूँ क्योंकि मेरा गाँव मुझमे में ज़िन्दा है,
photo by :-  Chandan Singh Bhati













आज गावं अपना अस्तित्व की लडाई लड़ रहे है ,
       

 आज के परिवेश  मे लोग आजीविका चलाने के लिए गावो से पलायन करके शहर मे  जाते है ! यह कविता उन्ही मे से एक के मन के भाव है !


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