Monday 28 November 2011

-:बेटी की पुकार :-



यह कविता आज की बेटी की पुकार है ! वो अपनी माँ को कोसती है की मुझे इस समाज मे जन्म दे कर बहुत बड़ी गलती की है !


मैने बेटी बन जन्म लीया,


मोहे क्यों जन्म दीया मेरी माँ


जब तू ही अधूरी सी थी!


तो क्यों अधूरी सी एक आह को जन्म दीया,


मै कांच की एक मूरत जो पल भर मै टूट जाये,


मै साफ सा एक पन्ना जिस् पर पल मे धूल नजर आये,


क्यों ऐसे जग मै जनम दीया, मोहे क्यों जनम दीया मेरी माँ,


क्यों उंगली उठे मेरी तरफ ही, क्यों लोग ताने मुझे ही दे


मै जित्ना आगे बढ़ना चाहू क्यों लोग मुझे पिछे खीचे!


क्यों ताने मे सुनती हू माँ,मोहे क्यों जन्म दीया मेरी माँ?

3 comments:

Rajput said...

बहुत मार्मिक और सवेंदनसिल रचना .
मेरे ब्लॉग पर भी तसरीफ लायें .

www.guglwa.com

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

very good ......

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