Thursday 24 November 2011

राजस्थानी विहर गीत


राजस्थानी विहर गीत :- राजस्थान के लोग पुराने ज़माने में व्यापार करने के लिए देश के  दुसरे राज्यों मे जाते थे ! तब उनकी पत्नी  विहर गीत गाती थी ! कभी कारुज़ा को बोलती की की मेरे पिया को संदेसा भिजवाती ! कुछ ऐसा यह गीत है जो अपने पिया को बोलती है की आप परदेश मत जावो
ओजी ओ हदक मिजाजो ओ ढोला
ओजी ओ हदक मिजाजी ओ ढोला
मतना सिधाऔ पूरबियै परदेस
रैवो नै अमीणै देस |
पूरबियै मैं तपै रै तावड़ौ, लूवां लाय लगाय
घूंघट री छांयां कुण करसी, कुण थांनै चँवर डुळाय
ओजी मिरगानैणी रा ढोला, मतना सिधाओ
पूरबियै परदेस, रैवो नै अमीणै देस |
पूरबियै मैं डांफर बाजै, ठंड पड़ै असराळ
सेज बिछा कुण अंग लगासी, पिलँग पथरणौ ढाळ
ओजी पिया प्यारी रा ढोला, मतना सिधाऔ
पूरबियै परदेस, रैवो नै अमीणै देस |
पूरबियै मैं बसै नखराळी, कांमणगारी नार
कांमण करसी मन बिलमासी, झांझर रै झिंणकार
ओजी चन्नावरणी रा ढोला, मतना सिधाऔ
पूरबियै परदेस, रैवो नै अमीणै देस |
चैत महीनै रुप निखरतां, क्यूं छोडौ घरबार
च्यार टकां की थारी नोकरी, लाख टकां की नार
ओजी नणदलबाई रा ओ वीरा, मतना सिधाऔ


पूरबियै परदेस, रैवो नै अमीणै देस |

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