Saturday 16 July 2011

सावण री राम राम

बिजली सी चिमकै चेतन में याद कर्यां बै बांता।
पलकां झपक्या करती कोनी, घुली धुली सी'र रातां।।
मन नादीदो नैण तिसाया, कान तरसता नेह।
चातक कोई तकै उड़िकै, बिन मौसम को मेह।।
सांस सांम में भरी गुदगुदी, हो री मन में खाटी।
रै सावण ले आव सजन नै, वाह भई शेखावाटी।।

2 comments:

naresh singh said...

ई सुंदर सी कविता रे सागे आपरो हिन्दी बलॉग जगत मै स्वागत है |

Unknown said...

नरेश जी आप का आभारी हू।

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