बिजली सी चिमकै चेतन में याद कर्यां बै बांता।
पलकां झपक्या करती कोनी, घुली धुली सी'र रातां।।
मन नादीदो नैण तिसाया, कान तरसता नेह।
चातक कोई तकै उड़िकै, बिन मौसम को मेह।।
सांस सांम में भरी गुदगुदी, हो री मन में खाटी।
रै सावण ले आव सजन नै, वाह भई शेखावाटी।।
2 comments:
ई सुंदर सी कविता रे सागे आपरो हिन्दी बलॉग जगत मै स्वागत है |
नरेश जी आप का आभारी हू।
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