Sunday, 28 April 2013

मोत


यह रुलाई नहीं तो फिर क्या है !
यह जुदाई नहीं तो फिर क्या है,

हाँ वो मुलाक़ात तो सफाई से करते है,
गर यह सफाई नहीं तो फिर क्या है,

दिलरुबा की तो सिर्फ दिलरुबाई है,
गर दिलरुबाई नहीं तो फिर क्या है,

शिकवा होता है सिर्फ दोस्ती मे,    
यह दोस्ती नहीं तो फिर क्या है,

रब ही जाने इन हसीनाओ का गुरूर,
यह खुदाई नहीं तो फिर क्या है,

गर मोत आई तो टल नहीं सकती है,
ओर आई नहीं तो कोई मार नहीं सकता ! 

2 comments:

Unknown said...

अच्छी अभिव्यक्ति...

Rajput said...

Good ! Keep it up

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