यह कविता उन अजन्मी लडकियों की है जिन्हें जन्म से पहले ही मोंत की सजा सुना दी गयी थी,और उन्हें अपने गुनाह का भी पता नहीं है !
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर मुझको सज़ा क्यों न हो,
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर मुझको सज़ा क्यों न हो,
बेटी हु ना यही तो मेरा सबसे बड़ा गुनाह है
मे एक अँधेरी रात सी हु,जो सिर्फ अँधेरा ही देती है
तुम्हे तो चाहिए कुलदीपक, जो तेरे घर को करे रोशन
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर.....
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर.....
अक्स तो मे तेरा ही हु और खून भी तो तेरा ही हु माँ
फिर भी तू अपने अस्तित्व को मिटाना चाहती है
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर..........
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर..........
यह फेसला तेरा नहीं है,क्यों की फेसले तो तुम ले ही नहीं सकती,
पर मुश्किल यह की छिपाकर भी नहीं रख सकती ज़माने से
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर.........
मे भी अंधेरों की गुफा से जीवन की रोशनी चाहती हु
तेरी कोख से जन्म लेकर मे भी जानु जीवन क्या है
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर..........
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर..........
बेटी तो हमेसा ही परेशानी की एक कड़ी रही है माँ
पर होती है अपनी ही अस्तित्वहीन परछाई,
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर........
तुने माना है कि मैं कोई ग़ैर नहीं हूँ मेरी माँ
मेरे सपनों को भी थोड़ी जगह दे दे जीवन मे तेरे
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर......
तेरी ख़ामोशियाँ ज़माने को बहुत कुछ कहना चाहे हैं,
फ़ुरसत कहा है ज़माने को जो तेरी ख़ामोशियों को सुन ले
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर........
कब तक मेरा यूही कोख मे कत्ल करवाती रहोगी माँ
और कब तक मुझे बिना जन्मे ही मरना होगा मेरी माँ
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर........
मैं बेगुनाह हूँ तो फिर मुझको सज़ा क्यों न हो,
बेटी हु ना यही तो मेरा सबसे बड़ा गुनाह है
2 comments:
बहुत मार्मिक भाव दर्शाती रचना. लड़कियों के बारे में अमानवीय सोच जल्द बदलनी चाहिए
dil ko cho jane wali kawita
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