आज शीत ने फिर मुझ से प्रीत की है
क्यो उससे फिर अनुराग बढ़ता जा रहा है
यौवन स्नेह सी बांध रही है यह शीत लहर मुझे
ओर फिर से चहतों का विस्तार बढ़ता जा रहा है
धुंध धीरे धीरे अपने आगोश मे ले रही
जेसे बाहो की परिधि हो मेरी माशूका की
आज सूरज और सर्द में देखो लगी है होड़ सी जाने....
ओर धीर धीरे धुंध को डसने लगी रोशनी सूरज की
ठंडी हवाए फिर धूप के गर्म सोल मे बदल गयी
ओर फ़िज़ाओं ने उठा दी धुंध मे ख़्वाबों की इक चादर सी